महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) को भारत के राष्ट्रपिता भी कहा जाता है इन्होनेअंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अहिंसावादी अभियानों के द्वारा विरोध किया और सन 15 August 1947 को भारत को आज़ादी दिलाने में भूमिका निभाई थी। हालाँकि गाँधी जी पेशे से एक वकील थे किन्तु एक विशेष घटना ने उन्हें अंग्रेजो से भारत को आज़ाद करवाने की प्रेरणा मिली। महात्मा गांधी निबंध (Mahatma Gandhi Essay) पढ़ना जारी रखें।
Mahatma Gandhi Essay
About Birth and Family-जन्म और परिवार के बारे में
ब्रिटिश शाषन काल में 02 ओक्टुबर 1869 पोरबंदर, गुजरात में एक समृद्ध परिवार में महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जी ने जन्म लिया और उनका नाम मोहनदास करमचंद गाँधी रखा गया। उनके पिता जी का नाम करमचंद गांधी था। उनके पिता करमचंद गांधी पोरबंदर राज्य के दीवान (मुख्यमंत्री) थे। उन्होंने इस पद पर 1822 से लेकर 1885 तक कार्य किया। उनकी माता का नाम पुतलीबाई गांधी था जो की एक साधारण ग्रहणी थी। करमचंद ने अपने कार्यकाल के दौरान चार शादियां कीं। पहली दो पत्नियों की युवावस्था में मृत्यु हो गई थी दोनों स्वर्गवासी पत्नियों एक – एक बेटी को जन्म दिया था, और उनकी तीसरी शादी से कोई संतान नहीं हुई । 1857 में, उन्होंने चौथे विवाह के लिए अपनी तीसरी पत्नी की अनुमति मांगी और उसी वर्ष उन्होंने पुतलीबाई से शादी करली , जो जूनागढ़ से भी आई थीं। करमचंद और पुतलीबाई के तीन बच्चे हुए। एक बेटा, लक्ष्मीदास 1860-1914, एक बेटी रालियटबेन 1862-1960 और एक और बेटा, करसनदास 1866-1913 और अंतिम संतान के रूप में मोहनदास करमचंद गाँधी (1869 -1948) को जनम दिया।
Gandhiji’s educational qualification-गांधी जी की शैक्षणिक योग्यता।
बाल विवाह की प्रथा के चलते गाँधी जी ने मात्र 13 वर्ष की आयु में मई 1883 को 14 साल की कस्तूरबाई (कस्तूरबा ) माखनजी कपाड़िया से विवाह कर लिया। किसके कारण उनकी एक साल की स्कूली शिक्षा का नुक्सान हो गया। कुछ वषों बाद 1885 के अंत में, गाँधी जी की मृत्यु हो गई।
जब गाँधी जी 16 साल के थे , उनका पहला बचा हुआ जिसकी कुछ दिनों बाद मृत्यु हो गयी। परिवार में दो मृत्यु के बाद गाँधी जी बहुत दुखी हुए। गांधी जी के चार बेटे हुए हरिलाल 1888 में पैदा हुए, मणिलाल 1892 में पैदा हुए , रामदास 1897 में पैदा हुए और देवदास 1900 में पैदा हुए। नवंबर 1887 में, 18 वर्षीय गांधी ने अहमदाबाद के हाई स्कूल से स्नातक कर ली। आगे की पढ़ाई करने के लिए गाँधी जी 10 अगस्त 1888 को पोरबंदर छोड़ कर बॉम्बे (मुंबई ) आ गए। और 4 सितंबर को गाँधी जी लन्दन के लिए रवाना हो गए। गांधी जी ने यूनिवर्सिटी कॉलेज लन्दन में दाखिला लिया और कानून और न्यायशास्त्र का अध्ययन किया और बैरिस्टर बनने के इरादे से इनर टेम्पल में नामांकन के लिए आमंत्रित किया गया। जून 1891 में बार कौंसिल में बुलाया गया और फिर लंदन से भारत के लिए रवाना हो गए, जहां उन्हें पता चला कि उनकी मां की मृत्यु लंदन में रहने के दौरान हो गई थी और उनके परिवार ने उनसे खबर ली थी।
TRAIN INCIDENT-ट्रेन की घटना
जब गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचे उन्होंने पाया की अफ्रीकन लोगों से नेसल और रंग के कारण भेदभाव किया जा रहा था। June 7, 1893 में जब महात्मा गाँधी जी ट्रेन में प्रथम श्रेणी में सफर कर रहे थे। लेकिन प्रथम श्रेणी का टिकट होने के बावजूद उन्हें यूरोपीय यात्रियों के साथ बैठने की अनुमति नहीं थी और ड्राइवर के पास फर्श पर बैठने के लिए कहा। इन्कार करने पर उन्हें ट्रेन से बहार फेक दिया गया। जिससे गाँधी जी को अपमान का सामना करना पड़ा। यहीं से गाँधी जी ने ब्रिटिशराज के खिलाफ खड़े होने के लिए प्रेरित किया।
CAMPAIGN AGAINST BRITISH RULE-ब्रिटिश शासन की खिलाफ अभियान
अफ्रीका हुई घटना के बाद महात्मा गाँधी ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ कई अभियान चलाये।
1. प्रथम विश्व युद्ध में भूमिका :
1918 में प्रथम विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वायसराय ने गांधी को दिल्ली में एक युद्ध सम्मेलन में आमंत्रित किया और महात्मा गाँधी को निवेदन किया की वे भारतियों को युद्ध के लिए भर्ती होने के लिए प्रेरित करेंऔर गाँधी जी ने इसके लिए सहमति जताई।
2. चंपारण आंदोलन :
गाँधी जी ने पहली बढ़ी उपलब्धि 1917 में बिहार के चंपारण आंदोलन से मिली। चम्पारण में किसानो को इंडिगोफेरा उगाने के लिए मजबूर किया गया था और गाँधी जी के इस आंदोलन ने किसानों को एंग्लो-इंडियन बागान मालिकों के खिलाफ खड़ा कर दिया। एंग्लो-इंडियन बागान मालिकों को स्थानीय प्रशाषन का समर्थन प्राप्त था। किसानों को अपनी फसल को प्रशाषन द्वारा निर्धारित मूल्य पर बागान मालिकों को बेचने के लिए मजबूर किया गया था। इसका समाधान निकलने के लिए किसानों ने गाँधी जी से बिनती की जिसे गाँधी जी ने स्वीकार करते हुए प्रशाषन से किसानों के लिए कुछ रिआयल हासिल कर ली। बिना हिंसा किये इस सफल के कारण सभी अचंभित रह गए। जिससे भारत की जनता का गांधी जी में विश्वास बन गया।
3.खेड़ा आंदोलन :
खेड़ा (कैरा ) गुजरात में स्थित एक शहर का नाम है। यहाँ 1918 बाढ़ और अकाल की स्थिति के कारण किसान प्रशाषन के भारी कर नहीं दे पा रहे थे। गांधी जी ने वल्लभभाई पटेल के साथ मिल कर 4 महीनों तक खेड़ा आंदोलन को जारी रखा। प्रशाषन से बातचीत के लिए किसानों की अगुवाई वल्लभभाई पटेल जी कर रहे थे।
मई 1918 के अंत तक में प्रशाषन ने किसानों को अकाल की समाप्ति तक करों में रिआयत देने का फैसला ले लिया।
4.सविनय अवज्ञा आंदोलन :
प्रथम विश्वयूद्ध में गाँधी जी ने भारतियों की सेना में भर्ती करवाई क्युकी ब्रिटिश सरकार से गाँधी जी को आश्वाशन मिला था की भारत में स्वशासन करने दिया जायेगा किन्तु युद्ध के अंत के बाद ब्रिटिश सरकार ने गाँधी जी से ब्रिटिश सरकार ने स्वशासन के बजाय गांधी को निराश करते हुए मामूली सुधारों की पेशकश की थी। जिसे देखते हुए गाँधी जी 1919 में ने सत्याग्रह (सविनय अवज्ञा) की घोषणा कर दी। गाँधी जी ने देश के मुस्लमानो से इस आंदोलन का समर्थन करने के लिए आग्रह किया किन्तु जिन्ना मुख्य रूप से जनता को उत्तेजित करने के प्रयास के बजाय संवैधानिक बातचीत के माध्यम से अंग्रेजों से निपटने में रुचि रखते थे। इसका कारण प्रथम विश्व्युद्ध में तुर्की के विरुद्ध भारतीय सैनिकों शामिल होने क कारण मुस्लिम समुदाय गाँधी के इस आंदोलन में शामिल नहीं हुए। इसका परिणाम यह हुआ की 1922 के अंत तक इस आंदोलन का अंत हो गया।
5.असहयोग आंदोलन :