Which is The Oldest Religion: 10 Powerful Religions in Human History

आज हमारा टॉपिक है Which is The Oldest Religion . इस टॉपिक में हम मानव इतिहास के 10 प्राचीन धर्मो को विस्तार से बताने जा रहे है यह जानकारी विभिन्न स्तोत्रों से ली गयी है । मानव सभ्यता का इतिहास हजारों वर्षों से गहरी धारों में बहता आया है और इस समय के दौरान विभिन्न प्रकार के धार्मिक विचारधाराएँ उत्पन्न हुई हैं। कई धर्मों की उत्पत्ति और विकास कई हजार वर्षों से पहले हुई थी और वे आज भी हमारे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यहाँ हम आपको मानव इतिहास के 10 प्राचीनतम धर्मों के बारे में बता रहे हैं:

 

Which is The Oldest Religion

Which is The Oldest Religion: 10 Powerful Religions in Human History

 

1. हिंदू धर्म: भारतीय सभ्यता का मूल आधार

हिंदू धर्म, भारतीय सभ्यता का महत्वपूर्ण हिस्सा है और विश्व के सबसे प्राचीन और व्यापक धर्मों में से एक है। यह धर्म अनगिनत आध्यात्मिक तत्वों, दार्शनिक विचारों, और सामाजिक रीतियों का संग्रह है, जिसका मूल उद्देश्य मनुष्य की उत्तरोत्तर प्रगति और मुक्ति है। हिंदू धर्म की उत्पत्ति वेदों में होती है, जो धर्म के मूल ग्रंथ माने जाते हैं। वेदों में भगवान की महत्वपूर्णता, ऋषियों के उपदेश, आध्यात्मिक ज्ञान और यज्ञ के महत्व का वर्णन किया गया है।

हिंदू धर्म में भगवान की विभिन्न रूपों की पूजा की जाती है, जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, दुर्गा, लक्ष्मी, सरस्वती आदि। इन देवी-देवताओं की भक्ति और पूजा से व्यक्ति को आध्यात्मिक समृद्धि, शक्ति और सुख की प्राप्ति होती है। हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत ‘कर्म’ है, जिसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्मों के आधार पर फल की प्राप्ति होती है। यह सिद्धांत व्यक्ति को नियमितता, समर्पण और कठिनाइयों के साथ समझाता है।

हिंदू धर्म में ध्यान और योग का महत्वपूर्ण स्थान है। योग के अभ्यास से मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य की प्राप्ति होती है और आत्मा की उन्नति होती है। ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास ये चार आश्रम हिंदू धर्म की जीवन पद्धतियों का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। व्यक्ति की आयु के अनुसार उन्हें अपने जीवन के विभिन्न चरणों में बाँटा जाता है, जिससे उसका आध्यात्मिक और सामाजिक विकास हो सके।

हिंदू धर्म में धर्म, आध्यात्मिकता, नैतिकता और सामाजिकता के महत्वपूर्ण आदर्श हैं। यह धर्म व्यक्ति को उसके कर्तव्यों की प्राप्ति, सत्य की पालना और परमात्मा के प्रति भक्ति में मार्गदर्शन करता है।

इसके अलावा, हिंदू धर्म भारतीय संस्कृति, कला, संस्कृति और साहित्य का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस धर्म के प्रमुख त्योहार जैसे दिवाली, होली, नवरात्रि, रक्षा बंधन आदि समाज की एकता और खुशियों को संजोते हैं।समार्थन और विवादों के बावजूद, हिंदू धर्म विश्वभर में एकता, सहयोग और धार्मिकता की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह धर्म मानवता के उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए एक मार्गदर्शक भूमिका निभाता है और सभी जीवों के प्रति समर्पित है।

 

2. जैन धर्म: अहिंसा और समर्पण का मार्गदर्शन

जैन धर्म भारतीय धार्मिक परंपरा का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो विशेष रूप से अहिंसा (नैनम) और समर्पण के मूल आदर्शों पर आधारित है। यह धर्म समाज में शांति, नैतिकता, और सामाजिक उन्नति की महत्वपूर्णता को समझाता है। जैन धर्म की उत्पत्ति वेदों के समकक्ष समय में हुई थी और इसके संस्थापक भगवान महावीर थे।

यह धर्म पाँच परमेष्ठी तीर्थंकरों के उपदेशों और उनकी जीवन दर्शनीयता पर आधारित है। जैन धर्म का मुख्य सिद्धांत ‘अहिंसा परमो धर्मः’ है, जिसका मतलब है कि अहिंसा ही सबसे उच्च धर्म है। जैन धर्म के अनुयायी अपने जीवन में किसी भी प्राणी के प्रति हानि नहीं पहुँचाने की प्रतिज्ञा करते हैं और इसे ‘नैनम’ कहते हैं।जैन धर्म में जीव को चैतन्य और अचैतन्य द्रव्यों में विभाजित किया गया है। इसके अनुसार, सभी प्राणियों में आत्मा होती है, जिसका स्वरूप चैतन्य है और यह अनन्त जीवों के साथ संबंधित है।

जैन धर्म में कर्म सिद्धांत भी महत्वपूर्ण है, जिसके अनुसार कर्मों का परिणाम व्यक्ति की जीवन की प्रकृति को निर्धारित करता है। यदि किसी के कर्म सच्चे, सत्य और अहिंसात्मक होते हैं, तो उसकी आत्मा मुक्ति की प्राप्ति के लिए तैयार हो जाती है।जैन धर्म के अनुयायी अपने जीवन में सामयिक और अचार्य के उपदेशों का पालन करते हैं। इसके अलावा, उनके पास व्रत, तप, ध्यान और पूजा जैसे आध्यात्मिक अभ्यासों का विशेष स्थान है।

जैन धर्म का एक अनूठा पहलु व्यापारिक नैतिकता की प्रशंसा है। जैन व्यापारिक समुदाय के लोगों को सत्य, उचित मान्यता, और दया के साथ काम करने की प्रेरणा मिलती है।जैन धर्म विश्वभर में सद्गुण, अहिंसा, त्याग, और समर्पण के मार्ग की महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह धर्म व्यक्ति को सच्चे आदर्शों की ओर आग्रहित करता है और समृद्धि, आत्मा की मुक्ति, और समाज के सामर्थ्य की प्राप्ति के लिए मार्गदर्शन करता है।

 

3. इस्लाम: ईश्वर की आदर्शों का पालन

इस्लाम धर्म दुनिया के प्रमुख धर्मों में से एक है, जो पूरे विश्व में अपने आदर्शों, शिक्षाओं और सामाजिक नीतियों के लिए प्रसिद्ध है। यह धर्म आल्लाह (ईश्वर) के अनुयायियों के लिए उनके जीवन की मार्गदर्शक है और उन्हें धार्मिकता, नैतिकता, और आदर्शों का पालन करने का उपदेश देता है। इस्लाम का शब्दिक अर्थ ‘समर्पण’ और ‘आस्तीन की बाज़ी’ से आता है, जिसका मतलब है कि एक व्यक्ति को अपनी आत्मा को अल्लाह के सामने समर्पित कर देना चाहिए। इस्लाम के मुताबिक, प्रत्येक मुस्लिम को अपनी श्रद्धा और आदर के साथ अपने जीवन के हर क्षेत्र में ईश्वर की मर्ज़ी का पालन करना चाहिए।

इस्लाम के प्रमुख धर्मिक ग्रंथ क़ुरआन (Quran) है, जिसे प्रोफ़ेट मुहम्मद को अल्लाह के माध्यम से उपदेश दिया गया था। क़ुरआन में इस्लाम के मूल सिद्धांतों, आदर्शों, नीतियों, और सामाजिक नियमों का विवरण दिया गया है। इस्लाम का मूल मंत्र “ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूलुल्लाह” है, जिसका अनुवाद होता है, “अल्लाह के सिवा कोई ईश्वर नहीं, मुहम्मद उनके पैगंबर है।” यह मंत्र ईमान की मुख्य घोषणा होती है और मुस्लिमों के विश्वास का संकेत है।

इस्लाम धर्म का एक महत्वपूर्ण सिद्धांत ‘तौबा’ है, जिसका मतलब है कि अपने पापों से पछताना और उन्हें सुधारने की प्रतिज्ञा करना। यह सिद्धांत व्यक्ति को उसके गलत कामों का पछताने और सुधारने के लिए अवसर देता है और उसे नए आदर्शों की ओर आग्रहित करता है। इस्लाम में पाँच महत्वपूर्ण आदर्श हैं, जिन्हें ‘पिल्लर्स ऑफ इस्लाम’ कहा जाता है: शहादत (ईमान की घोषणा करना), सलात (नमाज पढ़ना), ज़कात (धर्मिक चंदा देना), सौम (रोज़ा – उपवास करना), और हज़ (मक्का की यात्रा करना)।

इस्लाम के अनुयायी मुस्लिम को अपने जीवन में सच्चाई, न्याय, उपहास, और दया के साथ आचरण करने की सलाह दी जाती है। वे आल्लाह के सामने सजदे करते हैं और उन्हें नियमों का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं, जो समाज में न्याय, भलाई, और सहमति की स्थापना करते हैं। इस्लाम धर्म विश्वभर में एकता, सद्गुण, और सद्भावना की महत्वपूर्ण उपलब्धि है और यह अपने अनुयायियों को एक उद्देश्य की ओर आग्रहित करता है – व्यक्तिगत और सामाजिक स्तर पर सहमति, शांति, और समृद्धि की प्राप्ति करने के लिए।

 

4. बौद्ध धर्म: धर्म की ऊंचाइयों का मार्गदर्शन

बौद्ध धर्म एक प्राचीन और महत्वपूर्ण धर्म है, जिसकी उत्पत्ति भारत में हुई थी। यह धर्म भगवान गौतम बुद्ध के उपदेशों और शिक्षाओं पर आधारित है और विशेष रूप से अहिंसा और शांति के मूल तत्वों को प्रमोट करता है।

बौद्ध धर्म की उत्पत्ति महात्मा बुद्ध के जीवन के साथ जुड़ी है, जिन्होंने सिद्धार्थ गौतम के नाम से जन्म लिया था। उनका जीवन और संदेश मनुष्यता के मुद्दों के साथ जुड़े हुए थे, जैसे कि जन्म, मृत्यु, दुख, जन्म-मरण की चक्रवृद्धि आदि।

महात्मा बुद्ध के उपदेशों के आधार पर बौद्ध धर्म ने चार महत्वपूर्ण सत्यों को प्रमोट किया: दुख, दुख का कारण, दुख से मुक्ति का मार्ग, और निर्वाण।

बौद्ध धर्म का मूल आदर्श अहिंसा है, जिसका मतलब है कि किसी भी प्राणी को कभी भी हानि नहीं पहुँचानी चाहिए। यह धर्म मानवता के सभी जीवों के प्रति दया, करुणा, और समर्पण की महत्वपूर्णता को सिखाता है।

बौद्ध धर्म में “अत्ता ही दीप भव” यानी “तुम खुद ही प्रकाश हो” यह आदर्श भी महत्वपूर्ण है। इससे यह संकेत मिलता है कि हर व्यक्ति के अंदर आत्मा की दीप्ति है और वे खुद ही अपने आत्मा को पहचान सकते हैं।

बौद्ध धर्म के महत्वपूर्ण शिक्षाएँ ध्यान, समाधि, प्रज्ञा, समता, करुणा, मुदिता, और उपेक्षा को बढ़ावा देती हैं। ये शिक्षाएँ व्यक्ति की आत्मा के विकास में मदद करती हैं और उसे सामाजिक और मानसिक दुखों से मुक्ति प्रदान करती हैं। बौद्ध धर्म के अनुयायियों का उद्देश्य अपने जीवन में सहयोग, सद्गुण, और आदर्शों को अपनाकर समृद्धि और शांति प्राप्त करना है।

यह धर्म मानवता के मूल्यों की प्रशंसा करता है और उसे सही मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करता है। बौद्ध धर्म ने व्यक्ति को स्वयं की महत्वपूर्णता, सभी के साथ सद्भाव, और आत्मा की शांति की महत्वपूर्णता को सिखाया है। यह धर्म विश्वभर में शांति और सहयोग की मानवता की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक मार्गदर्शक भूमिका निभाता है।

 

5. यहूदी धर्म: ऐतिहासिक और आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

यहूदी धर्म, दुनिया के प्रमुख धार्मिक परंपराओं में से एक है, जो भगवान के साथ अपने संबंध और आदर्शों के लिए प्रसिद्ध है। यह धर्म अपने ऐतिहासिक, आध्यात्मिक, और सामाजिक पहलुओं के लिए मशहूर है और यहूदी समुदाय के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है।

यहूदी धर्म की उत्पत्ति ईसा पूर्व के समय में हुई थी और इसका आधार यहूदी धर्मशास्त्र, तलमूद और ख़बाला जैसे प्रमुख ग्रंथों में है। यह धर्म अव्राहम, इसहाक और याकूब के सिद्धांतों पर आधारित है और उनके संबंध को प्रमुखता देता है।

यहूदी धर्म का मुख्य ध्येय भगवान के साथ आत्मीयता और सामंजस्यपन की अर्थव्यवस्था को बनाए रखने में है। यहूदी धर्म के प्रमुख सिद्धांतों में ‘शेमा’ शब्द का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका मतलब होता है “सुनो, इस्राएल: यहोवा हमारा ईश्वर, यहोवा एक है।”

यहूदी धर्म में ‘तोरा’ का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जो मोशे के द्वारा प्राप्त आदर्शों और विधियों का संग्रह है। तोरा में दस आदर्शों के साथ-साथ मानव आदर्शों, समाजिक नीतियों और व्यक्तिगत सद्गुणों का वर्णन है।

यहूदी धर्म में मंदिर की जगह के रूप में ‘सिनागोग’ होती है और यह समुदाय के सदस्यों की सामूहिक पूजा, पाठ, और सामाजिक संगठन की जगह के रूप में कार्य करती है।

यहूदी धर्म में कई प्रमुख त्योहार मनाए जाते हैं, जैसे चानुक्या, पूरिम, रोश हाशना और योम किप्पूर। ये त्योहार समुदाय के एकता, परंपराओं की मान्यता, और आदर्शों के महत्व को प्रकट करते हैं।

यहूदी धर्म में तिक्वा (आशा) का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका मतलब होता है कि भविष्य में आशा और उत्तराधिकार की उम्मीद होनी चाहिए। यह मानवता को संघर्षों और परेशानियों के बावजूद आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है।

यहूदी धर्म विश्वभर में आदर्शों, तालिम, और तिक्वा की महत्वपूर्ण उपलब्धि है और यह समुदाय के सदस्यों को अपने जीवन में आदर्शों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है, जो समाज में सद्गुण, सामंजस्यपन और उत्तराधिकार की स्थापना करते हैं।

 

6. जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म: एक साझा परिप्रेक्ष्य

जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म, दुनिया की दो प्रमुख धार्मिक परंपराओं – यहूदी धर्म और ईसाई धर्म (क्रिश्चियनिति) के संयोजन को दर्शाता है। यह धर्म प्रमुखता से ईसा मसीह के उपदेशों, उनके जीवन के उदाहरणों और मृत्यु और उनके बाद के घटनाओं पर आधारित है।

जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म का आदान-प्रदान ‘बाइबल’ के ग्रंथों पर होता है, जिसमें पुरानी और नई आत्मा की पुस्तकें शामिल हैं। पुरानी आत्मा में ‘तोरा’ (यहूदी धर्म के ग्रंथ), ‘नबियों के किताबें’ और ‘कतुबिम’ शामिल हैं, जबकि नई आत्मा में ‘मत्ती’, ‘मरकुस’, ‘लूका’, ‘यूहन्ना’ आदि शामिल हैं, जिनमें ईसा मसीह के जीवन की घटनाएं, उपदेश और संदेश दर्शाये गए हैं।

जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म का मूल मंत्र ‘प्रेम करो अपने पड़ोसी से जैसे खुद से’ है, जिससे प्रतिष्ठान में और दूसरों के साथ नैतिकता और समर्पण की महत्वपूर्णता को दर्शाया जाता है।

जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म में मसीह के आगमन की महत्वपूर्ण घटना ‘क्रिस्मस’ के रूप में मनाई जाती है, जिसमें उनके जन्म की खुशी और आत्मा के नवनिर्माण की प्रतीक्षा का संकेत होता है।

जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म में ‘ईसा मसीह के उपदेशों’ का महत्वपूर्ण स्थान है, जिनमें वे आदर्शों, नैतिकता और सहमति की बात करते हैं। उन्होंने मानवता को अपने प्रत्येक सहयोगी के साथ सहमति और सद्भावना में जीने की प्रेरणा दी।

जुदैयो-क्रिश्चियन धर्म का एक महत्वपूर्ण ध्येय अपने जीवन में उच्चतम नैतिकता और सद्गुणों की स्थापना करना होता है। धार्मिक शिक्षाओं, प्रार्थना, और सेवा के माध्यम से जुदैयो-क्रिश्चियन समुदाय के सदस्य अपने आदर्शों की प्राप्ति के लिए प्रयास करते हैं।

इस धर्म के अनुयायी अपने संबंधों, समाज, और ईश्वर के साथ सहमति और सामंजस्यपन की महत्वपूर्णता को समझते हैं और इसे अपने जीवन में अपनाते हैं, जो समाज में शांति, सद्गुण, और सहयोग की नींव को मजबूती से बनाते हैं।

 

7. सिक्ख धर्म: एक अनूठा संगीत के साथ जुड़ा धार्मिक परंपरा

सिक्ख धर्म एक धार्मिक परंपरा है जो भारत में उत्पन्न हुई और संसार भर में अपने अनूठे सिधंतों और सामाजिक अनुष्ठान के लिए प्रसिद्ध है। यह धर्म गुरु नानक देव जी के उपदेशों पर आधारित है और इसका मुख्य सिद्धांत ‘एक ओंकार’ है, जिसका अर्थ होता है ‘एक ही भगवान’।

सिख धर्म की उत्पत्ति 15वीं सदी में हुई थी, जब गुरु नानक देव जी ने इसे स्थापित किया। उनके उपदेशों के परिणामस्वरूप सिख धर्म उनके पाँच प्रमुख उपदेशों पर आधारित है, जिन्हें ‘गुरूग्रंथ साहिब’ में संग्रहित किया गया है।

सिख धर्म का मुख्य सिद्धांत ‘सतनाम वा हेगुरु’ है, जिसका मतलब होता है कि भगवान के नाम में जीना और उसके उपासना करना सबसे महत्वपूर्ण है।

सिख धर्म के प्रमुख तत्वों में ‘सेवा’ का एक महत्वपूर्ण स्थान है। सिख समुदाय को सेवा करने का जीवनी मंत्र मिलता है और वे अपने समुदाय की सेवा करने में समर्थ होते हैं।

सिख धर्म में ‘कर्म’ का महत्वपूर्ण स्थान है, जिसका मतलब है कि व्यक्ति को अपने कर्मों के लिए उत्तराधिकारी होना चाहिए और उसे नैतिक और सच्चे कर्मों की ओर प्रेरित किया जाता है।

सिख धर्म में ‘किरत करो’ और ‘वंड चको’ ये दो सिद्धांत महत्वपूर्ण हैं, जिनका मतलब होता है काम करो और आपसी सहायता करो। ये सिखों को मानवता के प्रति उनके दायित्व को समझाते हैं और समाज में सद्गुण और सेवा की महत्वपूर्णता को दर्शाते हैं।

सिख धर्म में ‘संगत’ और ‘पंत्थ’ ये दो महत्वपूर्ण अस्तित्व हैं। संगत का मतलब होता है साथी सिखों का समूह जो मिलकर प्रार्थना, सेवा और आदर्शों का पालन करता है। पंत्थ का मतलब होता है सिख समुदाय की सामूहिक पहचान और एकता, जो समाज में सद्गुण, सहमति और सेवा की नींव को मजबूती से बनाती है।

सिख धर्म के प्रमुख त्योहार में ‘गुरु पूरब’ (गुरुओं के जन्म दिवस) और ‘वैसाखी’ (खालसा पंथ की स्थापना) शामिल हैं, जो समुदाय की ऐतिहासिक और आध्यात्मिक घटनाओं को मनाते हैं।

सिख धर्म में संगीत का भी महत्वपूर्ण स्थान है, जिसे ‘कीर्तन’ कहा जाता है। सिखों के सिधंतों, उपदेशों और जीवनी को कीर्तन के माध्यम से प्रकट किया जाता है और यह उन्हें आध्यात्मिक अनुभव का मार्ग दिखाता है।

सिख धर्म में समग्रता, सेवा, सामाजिक समर्पण और नैतिकता के माध्यम से व्यक्ति को उच्चतम आदर्शों की प्राप्ति की ओर प्रेरित किया जाता है। यह धर्म सद्गुणों की महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है और उन्हें समाज में सामंजस्यपन और सहमति की महत्वपूर्णता को समझाता है।

8. शिंटो धर्म: ओलंपस के देवता

शिंटो धर्म जापान की प्राचीन धार्मिक परंपराओं में से एक है, जो जापानी संस्कृति, तर्क और प्राचीन शैली की प्रतिष्ठान मानता है। शिंटो का मतलब होता है ‘दिव्य या दिव्यता’ और यह धर्म प्राकृतिक प्राकृति, उनके पूर्वजों की स्मृतियों और प्राचीन शिखरों के साथ जुड़ा हुआ है।

शिंटो का जन्म जापान के प्राचीन इतिहास में हुआ और यह जड़ से जुड़ी हुई स्थानीय प्रथाओं, प्राथमिकताओं और वन्यजीवी चिंतन की ओर पूर्णत: दिशा निर्दिष्ट करता है।

शिंटो धर्म के प्रमुख तत्वों में प्राकृतिक प्राकृति की पूजा का महत्वपूर्ण स्थान है। यह धर्म माता पृथ्वी, प्राकृति की देवी को समर्पित होता है और उनके साथ अनुष्ठान और सम्बंध को महत्वपूर्ण मानता है।

शिंटो धर्म के अनुयायियों का मुख्य ध्येय आदर्शों की प्राप्ति और स्थानीय परंपराओं की मान्यता होता है। वे अपने आदर्शों के माध्यम से अपने पूर्वजों के साथ जुड़े रहते हैं और उनके उपदेशों का पालन करते हैं।

शिंटो धर्म में ‘कामि’ (देवता) की पूजा का महत्व है, जिसका अर्थ होता है ‘दिव्यता’। वे विभिन्न प्राकृतिक तत्वों और देवी-देवताओं की उपासना करते हैं, जिनका उनके जीवन में महत्वपूर्ण स्थान होता है।

शिंटो धर्म में श्रद्धा, आदर्श और प्राकृतिक संरचना की महत्वपूर्णता को माना जाता है। यह धर्म व्यक्ति को उसके पूर्वजों और प्राकृतिक वातावरण के प्रति समर्पित होने की महत्वपूर्णता को समझाता है और वे अपने संबंधों और समाज में सहयोगी बनने के लिए प्रोत्साहित करता है।

शिंटो धर्म के अनुयायियों का संगीत, कला और साहित्य के प्रति भी गहरा समर्पण होता है। वे वन्यजीवी जीवन की महत्वपूर्णता को मानते हैं और इसे अपने संबंधों और परंपराओं की मान्यता के साथ जोड़ते हैं।

समाग्रता, सम्मान, और सहमति के मूल सिद्धांतों के साथ, शिंटो धर्म एक प्राचीन और सामाजिक अनुष्ठान की परंपरा की प्रतिष्ठा करता है, जो मानवता के साथ सद्गुणों की नींव को मजबूती से बनाती है।

 

9. ईजिदी धर्म: एक अलगाववादी धार्मिक समुदाय

ईजिदी धर्म, जिसे ईजिदियात भी कहा जाता है, एक अलगाववादी धार्मिक समुदाय का हिस्सा है जो इबादिया नामक समुदाय के सदस्यों द्वारा अनुसरण किया जाता है। यह एक शाखा है जो इस्लाम की प्रमुख धाराओं से थोड़ा अलग मानती है और अपने विशिष्ट धार्मिक मतभेदों को प्रमोट करती है।

ईजिदी धर्म की उत्पत्ति 7वीं सदी में हुई थी, जब इबादिया समुदाय के शिष्य इबाद इब्न साबित ने इसे स्थापित किया। उन्होंने इस समुदाय को ईसाई और यहूदी समुदायों की परंपराओं के बावजूद इस्लाम की सच्चाई का पालन करने के लिए प्रेरित किया।

ईजिदी धर्म का मुख्य सिद्धांत है ‘आदलत’ और ‘उखुव्वत’ (समाज में एकता और बंधुत्व)। यह धर्म मानवाधिकार, न्याय और सामाजिक समरसता की महत्वपूर्णता को मानता है।

ईजिदी धर्म के अनुयायी अपने आदर्शों के प्रति समर्पित रहते हैं और वे इस्लाम के प्रमुख सिद्धांतों के साथ अपनी विशेषताओं को अद्यतन करते हैं।

ईजिदी धर्म में प्रार्थना की महत्वपूर्ण भूमिका है, और वे अपनी प्रार्थनाओं में अल्लाह की महत्वपूर्णता को मानते हैं। उनके धार्मिक अनुष्ठान में अल्लाह की राह में आदर्शों का पालन और अच्छे कर्म करने की महत्वपूर्णता को जोड़कर दिखाया जाता है।

ईजिदी धर्म में तालाक की मान्यता होती है, लेकिन उनके अनुसार तालाक केवल आदर्शों की अवहेलना के कारण किया जा सकता है और उन्हें समाज में विचारित तरीके से सम्पन्न करना चाहिए।

ईजिदी धर्म में ‘जिहाद’ की अनूठी व्याख्या होती है, जिसे वे ‘खुदा की राह में संघर्ष’ के रूप में मानते हैं। इसे वे शांतिपूर्ण और आदर्शों के अनुसार करने की सलाह देते हैं, जिससे विश्वासियों की आत्मरक्षा और समाज में सुरक्षा की गारंटी हो।

ईजिदी धर्म में सामाजिक समर्पण, न्यायपरायणता और आदर्शों के प्रति समर्पण के मूल सिद्धांत होते हैं। यह धर्म मानवता के साथ सद्गुणों की नींव को मजबूती से बनाता है और समाज में शांति, समरसता, और सद्भावना की प्रमुख भावना को प्रोत्साहित करता है।

 

10. जुदो धर्म: एक यहूदी धार्मिक प्रणाली

जुदो धर्म, जिसे यहूदी धर्म भी कहा जाता है, यहूदी समुदाय की प्रमुख धार्मिक प्रणाली है जो उनके आदर्शों, आचार-अनुष्ठान और संस्कृति को परिभाषित करती है। इस धर्म की नींव उनके पवित्र ग्रंथ तानाख में रखी गई है, जिसमें तीन भाग होते हैं – तोरा, नवी और केतुवीम। यह ग्रंथ यहूदी धर्म की मूल शिक्षाएं, कानून, इतिहास और आदर्शों को संग्रहित करता है।

जुदो धर्म में नैतिकता, सद्गुण और दानशीलता की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह धर्म व्यक्तिगत और सामाजिक जिम्मेदारियों के प्रति संवेदनशीलता को प्रोत्साहित करता है और सभी मनुष्यों के समान अधिकार और मूल्य की महत्वपूर्णता को मानता है।

जुदो धर्म के अनुयायी यह भी मानते हैं कि इस धर्म के आदर्शों का पालन करके ही वे अच्छे और नैतिक जीवन जी सकते हैं। यह धर्म उन्हें अपने आत्मा की पहचान करने, अपने कर्तव्यों का पालन करने, और समाज में यथार्थता और सद्भावना के साथ रहने की प्रेरणा देता है।

जुदो धर्म के अनुसार, यहूदी समुदाय को अपने धार्मिक आदर्शों का पालन करने के साथ-साथ समाज में न्यायपरायणता, दानशीलता और मानवाधिकार के प्रति समर्पित रहना चाहिए। यह धर्म सामाजिक समरसता और सद्भावना को प्रोत्साहित करता है और यहूदी समुदाय को एक अद्वितीय और ऐतिहासिक धार्मिक पहचान प्रदान करता है।

 

निष्कर्ष में, प्राचीन दस धर्मों का अध्ययन हमें मानवता के आध्यात्मिक और धार्मिक परिप्रेक्ष्य की महत्वपूर्णता को समझाता है जिन्होंने अपने समुदायों को मानव जीवन के तत्वों, नैतिकता के मार्गदर्शन और सामाजिक संबंधों की महत्वपूर्ण शिक्षाएँ प्रदान की। हिन्दू धर्म का कर्म, धर्म और मोक्ष के प्रति महत्वपूर्ण ध्यान होता है।

जैन धर्म अहिंसा और दया के मूल सिद्धांतों पर आधारित है और उद्धारण और स्वाध्याय की महत्वपूर्णता को प्रमोट करता है।

इस्लाम अल्लाह की इच्छा का पालन करने के माध्यम से अपने अनुयायियों को एकजुट करता है।

बौद्ध धर्म सिद्धार्थ गौतम के उपदेशों पर आधारित है और मुक्ति की प्राप्ति के लिए आर्यश्टांगिक मार्ग की प्रेरणा देता है।

यहूदी धर्म एकमात्र ईश्वर की पूजा, नैतिकता और समुदाय की महत्वपूर्णता को प्रमोट करता है। ईसाई धर्म प्रेम, क्षमा और आदर्शों की प्रेरणा देता है।

सिख धर्म समानता, निष्ठा और भगवान की भक्ति को महत्व देता है।

शिंटो धर्म कामी आत्माओं की पूजा करता है और प्रकृति के साथ समन्वयपूर्ण संबंध को बढ़ावा देता है।

जोरोआस्ट्रियनिजम श्रेष्ठता के बीच लड़ाई की भावना को महत्वपूर्ण मानता है और सत्य और धर्म की प्राप्ति की प्रेरणा देता है।

इन प्राचीन धर्मों ने मानवता के आदर्शों, मूल्यों और एकता की महत्वपूर्णता को प्रमोट किया है, और साथ ही सामाजिक समरसता को बढ़ावा दिया है।

उम्मीद करते है की हमारे इस लेख Which is The Oldest Religion से आपके ज्ञान में वृद्धि हुई होगी।

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