Uniform Civil Court : UCC Article 44

Uniform Civil Court (UCC) भारत के सविधान में सविधान की रचना करते समय डाला गया था जिसे आर्टिकल 44 कहा जाता है। जिसमें स्पष्ट रूप से लिखा है की राज्य, भारत के समस्त राज्यक्षेत्र में नागरिको के लिए एक समान सिविल सहित लागु करने का प्रयास करेगा। किन्तु कांग्रेस ने सविधान के आदेशों को अपने स्वार्थ के लिए नज़र अंदाज़ किया और शरिया को सविधान से ऊपर रखा जिसके कारण मुस्लिम समुदाय के लिए शरिया कानून और हिन्दू, सिख, ईसाई , क्रिश्चिएन, बोध, जैन, पारसी समाज को भारतीय सविधान के कानून के अनुसार चलने के लिए कहा गया। कांग्रेस ने भारत की जनता को धर्म के आधार पर दो हिस्सों में बांट दिया। इसका सबसे बड़ा उदाहरण मुस्लिम लॉ बोर्ड और वक्फ बोर्ड है।

Uniform Civil Court : UCC Article 44

Uniform Civil Court

Uniform Civil Court धर्म के आधार पर : एक का काला सच

भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने एक समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Court) की आकांक्षा व्यक्त की थी, लेकिन हालांकि उनकी सरकार ने हिंदू कानून को संहिताबद्ध करने में सफलता हासिल की, लेकिन मुस्लिम व्यक्तिगत कानूनों के सुधार के पक्ष में कोई कदम नहीं उठाया और समान संहिता के प्रश्न को आवांटन कर दिया। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान सभा से एक समान संहिता को अपनाने का आग्रह किया था, लेकिन उन्हें संविधान सभा के मुस्लिम सदस्यों की कट्टर प्रतिरोध का सामना करना पड़ा, इसलिए संविधान में वह केवल मार्गदर्शक नीतियों के अन्तर्गत Uniform Civil Court धारा 44 को सम्मिलित करवाया गया, जिसमें कहा गया है कि “राज्य नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता को सुनिश्चित करने का प्रयास करेगा।”

क्या Uniform Civil Court मुस्लिम विरोधी कानून है ? (Is Uniform Civil Court an anti-Muslim law?)

जब से Uniform Civil Court के आने की खबर आयी है तभी से चर्चा हो रही है की यह कानून मुस्लिम विरोधी है। कुछ मौलाना , मुस्लिम पोलिटिकल पार्टी, और मुस्लिम संगठन जैसे की मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस कानून का विरोध कर रहे है। किन्तु इसी के साथ ही कुछ बीजेपी विरोधी पार्टी, मौलाना , मुस्लिम स्त्रियां इस कानून को समय की मांग बता रहे है। हाल ही में सऊदी के पूर्व कानून मंत्री ने भारत दौरे के दौरान बताया की भारत एक धर्म निरपेक्ष देश है यहाँ सभी को सामान अधिकार मिलते है और सभी को भारत के कानून का पालन करना चाहिए। कुछ कट्टर मुस्लिम संगठनों का कहना है की Uniform Civil Court से उनकी धार्मिक परक्रियां में बढ़ा आएगी क्युकी वे शरिया को भारत के कानून से ऊपर मानते है। और वे शरिया के हिसाब से अपने समाज को चलाएंगे।

अगर इंसानियत की नज़र से देखा जाये तो Uniform Civil Court समाज में सभी को इन्साफ दिलाने अच्छा जीवन जीने और एकजुट करने में सहायक होगा। इससे मुस्लिम स्त्रियों को उचित न्याय मिलेगा। वैधानिक प्रक्रिया से तलाक होगा। तीन बार तलाक देने को प्रथा समाप्त जो जाएगी। स्त्रियों को तलाक देने से पहले पुरुष विचार करेगा। स्त्रियों को संपत्ति में पारबर का अधिकार मिलेगा। तलाक के बाद स्त्रियों को पति की तरफ से गुज़ारा भत्ता मिलता रहेगा जिससे बच्चों का जीवन अंधकार में जाने से बचाया जायेगा। स्त्रियों को तलाक के भय से मुक्ति मिलेगी। एक से ज्यादा शादी करने से बचा जायेगा। दूसरी शादी तभी कर सकते है जब पहली पत्नी को कोई बच्चा न हो दो पहली पत्नी बच्चा न होने पर दूसरी शादी करने की सहमति दे। यदि Uniform Civil Court से किसी को नुक्सान होगा तो वो है कट्टर सोच रखने वाले मुस्लिम मर्द।

विश्लेषण (Analysis)

भारतीय कानून और मुस्लिम कानून दो पृथक्कृत विधि ढांचे हैं जो देश में सह-अस्तित्व में हैं। भारतीय कानून सभी नागरिकों के लिए लागू होता है और इसे भारतीय संसद द्वारा पारित कानूनों का आधार माना जाता है। इस कानूनी ढांचे का उपयोग अपराधिक कानून, नागरिक कानून, परिवार कानून, संपत्ति कानून, अनुबंध कानून और अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। यह सभी धर्मों के नागरिकों पर लागू होता है और धार्मिक आधार पर नहीं होता है।

वहीं, मुस्लिम कानून इस्लामी धार्मिक पाठों से प्राप्त होता है और इसे मुस्लिमों के संबंधित मामलों पर विशेष रूप से लागू किया जाता है। इसका मकसद मुस्लिम व्यक्ति की व्यक्तिगत स्थिति, परिवार विधि, विरासत, तलाक, निर्धारण, और पालन-पोषण आदि संबंधित मुद्दों पर मार्गदर्शन करना है। मुस्लिम कानून का संकलन किया जाता है मुस्लिम व्यक्तिगत कानून (शरीअत) अधिनियम, 1937 के माध्यम से और इसे मुस्लिम व्यक्तिगत कानून, न्यायिक निर्णयों, और इस्लामी अदालतों के माध्यम से लागू किया जाता है।

मुस्लिम कानून के अंतर्गत कानूनी विधान को आयोजित किया जाता है और इसे इस्लामी विद्वानों की व्याख्या और इस्लामी अदालतों के फैसलों के माध्यम से लागू किया जाता है। हालांकि, इन न्यायालयों के फैसले भारतीय न्यायिक प्रणाली के अंतर्गत होते हैं और उच्चतम न्यायालयों में इन फैसलों को चुनौती दी जा सकती है।

हाल के वर्षों में, मुस्लिम व्यक्तिगत कानून के सुधार और आधुनिकीकरण के बारे में वाद-विवाद और चर्चाएं हुई हैं। कुछ लोग मान्यता देते हैं कि मुस्लिम कानून को विवाह, तलाक, विरासत आदि के मामलों में महिलाओं के पक्ष में न्यायपूर्ण रूप से बदला जाना चाहिए। ये चर्चाएं मुस्लिम महिलाओं के पक्षधर्मी प्रक्रियाओं के समानता और न्याय की मांग को प्रतिबिंबित करती हैं।

यह महत्वपूर्ण है कि भारतीय कानून की विधिक प्रणाली, भारतीय कानून और मुस्लिम कानून दोनों के साथी में जीवित और बदलती रहती है। सर्वोच्च न्यायालय भारत के मुख्य न्यायिक प्राधिकार है और यह इन दोनों कानूनी ढांचों के बीच समंगति की निगरानी करता है, साथ ही मूलभूत संविधानिक सिद्धांतों के साथ सुसंगत रखता है, जैसे कि समानता, न्याय और व्यक्तिगत अधिकार।

सारांश के रूप में, भारतीय कानून और मुस्लिम कानून दोनों भारत में सह-अस्तित्व के रूप में मौजूद हैं। भारतीय कानून सभी नागरिकों के लिए लागू होता है और यह संसद द्वारा पारित कानूनों पर आधारित है। मुस्लिम कानून इस्लामी धार्मिक पाठों से प्राप्त होता है और मुस्लिमों के संबंधित मामलों पर लागू होता है। भारतीय कानून व्यापक होता है और विभिन्न क्षेत्रों को कवर करता है, जबकि मुस्लिम कानून मुस्लिम व्यक्तिगत कानून, न्यायिक निर्णयों, और इस्लामी अदालतों के माध्यम से लागू होता है। सर्वोच्च न्यायालय भारत इन दोनों कानूनी ढांचों के मध्य समंगति की सुनिश्चित करता है और मुख्यतः भारतीय संविधान के मूलभूत सिद्धांतों के साथ इनको बल में लेता है, जैसे कि समानता, न्याय और व्यक्तिगत अधिकार।

 

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